सुप्रीम कोर्ट ने 31 अक्टूबर 2025 को जारी एक विस्तृत आदेश में नई दिल्ली स्थित नई राजिंदर नगर मार्केट की एक संपत्ति को डी-सील करने की मांग करने वाली याचिका को खारिज कर दिया। मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने कहा कि संपत्ति के केवल ग्राउंड फ्लोर का ही उपयोग वाणिज्यिक गतिविधियों के लिए किया जा सकता है, जबकि ऊपरी मंज़िलें आवासीय ही रहेंगी, जब तक कि मालिक विधिवत कन्वर्ज़न शुल्क जमा नहीं करता।
पृष्ठभूमि
यह मामला लंबे समय से चल रहे एम.सी. मेहता बनाम भारत संघ जनहित याचिका (1985) से जुड़ा है, जिसमें दिल्ली में भूमि के दुरुपयोग, अवैध निर्माण और अनधिकृत कन्वर्ज़न से संबंधित मुद्दों को उठाया गया था। वर्षों के दौरान, सुप्रीम कोर्ट ने इन मामलों की निगरानी के लिए कई समितियाँ गठित कीं - जिनमें 2006 की मॉनिटरिंग कमेटी और बाद में 2022 में गठित ज्यूडिशियल कमेटी प्रमुख थीं।
वर्तमान याचिकाकर्ता ने प्लॉट नंबर 106, नई राजिंदर नगर मार्केट की संपत्ति को डी-सील करने की मांग की थी, यह कहते हुए कि यह प्लॉट मूल रूप से वाणिज्यिक उपयोग के लिए ही आवंटित था। लेकिन दिल्ली नगर निगम (MCD) ने विरोध करते हुए कहा कि केवल ग्राउंड फ्लोर को ही वाणिज्यिक प्रयोजनों के लिए स्वीकृति दी गई थी और याचिकाकर्ता ने ऊपरी मंज़िलों को गैरकानूनी रूप से व्यावसायिक उपयोग में बदल दिया।
अदालत का अवलोकन
सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता कैलाश वासदेव ने याचिकाकर्ता का पक्ष रखा, जबकि वरिष्ठ अधिवक्ता एस. गुरु कृष्ण कुमार (अमाइकस क्यूरी) और वरिष्ठ अधिवक्ता संजीब सेन एमसीडी की ओर से पेश हुए।
न्यायालय ने पाया कि ज्यूडिशियल कमेटी का दिसंबर 2023 का आदेश इस प्रकार के मामलों को सामूहिक रूप से निपटाता है और व्यक्तिगत तथ्यों की गहराई से जांच नहीं करता - जिसे पीठ ने अनुचित बताया।
न्यायाधीशों ने 1957 से 2005 तक के कई पट्टा और स्वामित्व दस्तावेजों का अध्ययन किया। उन्होंने पाया कि जबकि ग्राउंड फ्लोर को “शॉप” के रूप में आवंटित किया गया था, लेकिन इस बात का कोई सबूत नहीं मिला कि पहली मंज़िल को कभी वाणिज्यिक उपयोग के लिए स्वीकृति दी गई थी। वास्तव में, 2005 में स्वीकृत बिल्डिंग प्लान में स्पष्ट रूप से ऊपरी मंज़िलों को “रसोई, बेडरूम और बाथरूम सहित आवासीय अपार्टमेंट” बताया गया था।
पीठ ने कहा “सिर्फ इस आधार पर कि संपत्ति को आवासीय प्रयोजन के लिए सीमित करने का कोई स्पष्ट वचन नहीं दिया गया, इसका यह अर्थ नहीं लगाया जा सकता कि वह स्वतः वाणिज्यिक हो गई।”
अदालत ने आगे कहा कि नई राजिंदर नगर मार्केट को ‘शॉप-कम-रेज़िडेंस लोकल शॉपिंग सेंटर (LSC)’ के रूप में अधिसूचित किया गया है, जहाँ केवल ग्राउंड फ्लोर पर व्यापारिक गतिविधियाँ की जा सकती हैं, जब तक कि मालिक दिल्ली मास्टर प्लान-2021 के अनुसार आवश्यक कन्वर्ज़न शुल्क का भुगतान न कर दे।
एमसीडी की रिपोर्ट में पाया गया कि संपत्ति ने अनुमत फ्लोर एरिया रेशियो (FAR) से अधिक निर्माण किया है और कुछ असंयोज्य उल्लंघन (non-compoundable deviations) भी पाए गए हैं। न्यायालय ने कहा - “जब आवासीय क्षेत्रों को व्यावसायिक रूप में बदल दिया जाता है, तो इससे शहर के बुनियादी ढांचे पर बोझ बढ़ता है - पार्किंग, ट्रैफिक और सुविधाओं पर दबाव पड़ता है। इन सभी पहलुओं को योजनाबद्ध तरीके से ध्यान में रखना आवश्यक है।”
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निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने संपत्ति को डी-सील करने की याचिका खारिज कर दी और ऊपरी मंज़िलों पर व्यावसायिक गतिविधियों की अनुमति देने से इंकार किया। हालांकि, पीठ ने एमसीडी को एक नई संयुक्त निरीक्षण रिपोर्ट तैयार करने का निर्देश दिया, जिसमें गैर-कानूनी निर्माण, कन्वर्ज़न शुल्क और पेनल्टी चार्ज का स्पष्ट उल्लेख हो।
अदालत ने यह भी कहा कि यदि याचिकाकर्ता गैर-कानूनी निर्माण को हटा देता है और निर्धारित शुल्क का भुगतान करता है, तो वह भविष्य में सीमित वाणिज्यिक उपयोग की अनुमति प्राप्त करने के लिए आवेदन कर सकता है।
इन निर्देशों के साथ, पीठ ने याचिका को खारिज करते हुए यह दोहराया कि किसी भी आवासीय संपत्ति को वाणिज्यिक उपयोग में बदलना केवल विधिसम्मत प्रक्रिया के तहत ही संभव है - न कि ऐतिहासिक व्याख्याओं या मौखिक दावों के आधार पर।
Case: M.C. Mehta vs Union of India & Others
Court: Supreme Court of India
Bench: Chief Justice B.R. Gavai and Justice K. Vinod Chandran
Case Type: Public Interest Litigation (Writ Petition - Environmental/Urban Regulation)
Application: I.A. No. 203615 of 2024 in W.P.(C) No. 4677 of 1985
Applicant: Owner of Plot No. 106, New Rajinder Nagar Market, New Delhi
Respondent: Union of India & Municipal Corporation of Delhi (MCD)
Date of Judgment: October 31, 2025










