इलाहाबाद हाई कोर्ट ने फैसला दिया है कि जब दो पक्ष एक वर्ष से अधिक पृथक रहने के बाद आपसी सहमति से तलाक के लिए सहमत होते हैं, तो सहमति से पहले की पृथक्करण अवधि भी कानून के तहत मान्य रहती है। अदालत ने स्पष्ट किया कि पृथक्करण के दौरान तलाक की सहमति बनने से पूर्व की पृथक्करण अवधि समाप्त नहीं होती।
यह मामला एक दंपति से संबंधित था जिनका विवाह 2004 में हुआ था और उनके तीन बच्चे थे। विवाद उत्पन्न होने के बाद वे 12 जनवरी 2022 से अलग रह रहे थे। 1 अगस्त 2023 को, बड़ों के हस्तक्षेप से, दोनों ने आपसी सहमति से तलाक के लिए याचिका दायर करने पर सहमति जताई। हालांकि, फैमिली कोर्ट ने उनकी याचिका यह मानते हुए खारिज कर दी कि उनका पृथक्करण 2 अगस्त 2023 से शुरू हुआ है।
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न्यायमूर्ति अरिंदम सिन्हा और न्यायमूर्ति अवनीश सक्सेना की पीठ ने स्पष्ट किया:
"धारा 13-बी(1) के तहत आवश्यक है कि याचिका दायर करने से पहले एक वर्ष या अधिक का पृथक्करण हो। पृथक्करण के दौरान यदि आपसी सहमति से तलाक के लिए सहमति बनती है, और जब तक यह प्रमाणित न हो कि सहमति के समय या उसके बाद पक्ष एक साथ रहे, तलाक के लिए सहमति बनना पृथक रहने की स्थिति को समाप्त नहीं करता।"
दोनों पक्ष अदालत में उपस्थित थे और उन्होंने पुष्टि की कि वे जनवरी 2022 से अलग रह रहे हैं, 2013 से उनके बीच कोई शारीरिक संबंध नहीं रहा है, और उनके बीच कोई दावा या प्रतिदावा नहीं है। उन्होंने यह भी सहमति दी कि बच्चों की अभिरक्षा मां के पास रहेगी।
अदालत ने यह भी कहा:
"कारण का उत्पन्न होना तथ्यों का एक समूह है और केवल इसलिए कि पक्षों ने 1 अगस्त 2023 को आपसी तलाक के लिए सहमति दी, यह नहीं कहा जा सकता कि वे उस दिन एक साथ थे।"
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तथ्यों की पुष्टि के बाद, हाई कोर्ट ने पाया कि अनिवार्य छह माह की प्रतीक्षा अवधि भी पूरी की गई थी। अतः, अदालत ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13-बी के तहत विवाह को भंग कर दिया और तलाक की डिक्री शीघ्र तैयार करने का आदेश दिया।
केस का शीर्षक: श्रीमती मीनाक्षी गुप्ता बनाम कैलाश चंद्र [प्रथम अपील दोषपूर्ण संख्या - 207/2025]