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बॉम्बे हाईकोर्ट ने पत्नी की तलाक का केस पुणे से उस्मानाबाद ट्रांसफर करने की याचिका खारिज की

Shivam Y.

बॉम्बे हाईकोर्ट ने पत्नी की तलाक की कार्यवाही को पुणे से उस्मानाबाद स्थानांतरित करने की याचिका खारिज की। पूरी न्यायिक प्रक्रिया और कानूनी तर्क पढ़ें।

बॉम्बे हाईकोर्ट ने पत्नी की तलाक का केस पुणे से उस्मानाबाद ट्रांसफर करने की याचिका खारिज की

एक महत्वपूर्ण वैवाहिक विवाद में, बॉम्बे हाईकोर्ट ने पत्नी द्वारा तलाक की कार्यवाही को पुणे से उस्मानाबाद ट्रांसफर करने की याचिका खारिज कर दी। अदालत ने उसके दावों को अविश्वसनीय बताया और कहा कि यह याचिका केस में देरी करने की रणनीति मात्र है।

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मामला पृष्ठभूमि

यह याचिका अमृता सोनुने द्वारा दायर की गई थी, जो उस्मानाबाद की रहने वाली एक 37 वर्षीय गृहिणी हैं। उन्होंने अपने पति सचिन सोनुने द्वारा शुरू की गई तलाक की कार्यवाही को अपने निवास स्थान के पास स्थानांतरित करने की मांग की।

दोनों की शादी अप्रैल 2016 में एक अंतर्जातीय प्रेम विवाह के रूप में हुई थी। पत्नी के अनुसार, उन्हें मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना का सामना करना पड़ा, और उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि पति शराबी है और उसका किसी अन्य महिला के साथ अवैध संबंध है।

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पत्नी की मुख्य दलीलें

अभियाचक की ओर से प्रस्तुत किया गया:

  • वह अपने माता-पिता पर आर्थिक रूप से निर्भर हैं।
  • उन्हें मधुमेह, उच्च रक्तचाप और बवासीर है, जिसके कारण पुणे (लगभग 280 किमी दूर) की यात्रा अत्यंत कठिन है।
  • प्रत्येक अदालत उपस्थिति में ₹10,000 तक का खर्च आता है।
  • वह अब भी अपने पति के साथ सुलह करना चाहती हैं।

"पत्नी स्वास्थ्य और आर्थिक परेशानी के कारण पुणे में पेश नहीं हो सकती," उनके वकील ने कहा।

उन्होंने सुमिता सिंह बनाम कुमार संजय और सुनीता बनाम बालिराम मामलों का हवाला दिया, जहां पत्नी की परिस्थिति देखते हुए ट्रांसफर की याचिका मंजूर की गई थी।

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पति की ओर से आपत्ति

उत्तरदाता के वकील ने इसका विरोध करते हुए कहा कि यह याचिका केवल मामले में देरी करने के उद्देश्य से दाखिल की गई है। उन्होंने तर्क दिया:

  • पति अपने परिवार का इकलौता कमाने वाला सदस्य है।
  • उसे अपनी बीमार मां की देखभाल करनी होती है और उस्मानाबाद की यात्रा से उसकी नौकरी खतरे में पड़ सकती है।
  • पत्नी पहले भी कई बार कोर्ट में हाजिर हो चुकी है और उसके वकील नियमित रूप से पेश हो रहे हैं।
  • वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की सुविधा उपलब्ध है, जिसका वह लाभ उठा सकती है।

उन्होंने आगे कहा:

“सुविधा का संतुलन पति के पक्ष में है। पत्नी की अनुपस्थिति जानबूझकर प्रतीत होती है।”

पति ने यह भी कहा कि यदि पत्नी को शारीरिक रूप से उपस्थित होना पड़े, तो वह प्रति उपस्थिति ₹5,000 देने को तैयार हैं।

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न्यायमूर्ति कमल खाटा ने 25 जुलाई 2025 को मामला सुरक्षित रखा और 1 अगस्त 2025 को आदेश सुनाया। मुख्य निष्कर्ष:

  • अदालत ने पत्नी के बयानों में अंतर्विरोध पाया — जहां एक ओर वह प्रताड़ना का आरोप लगाती हैं, वहीं दूसरी ओर पुनर्मिलन की इच्छा भी जताती हैं।
  • पत्नी कई सुनवाइयों से अनुपस्थित रहीं, जबकि उन्हें बार-बार अवसर दिया गया।
  • याचिका जानबूझकर देरी करने की रणनीति के रूप में दायर की गई थी।

“अभियाचिका का व्यवहार केवल देरी करने का उद्देश्य दिखाता है। ऐसी प्रक्रिया का दुरुपयोग स्वीकार नहीं किया जा सकता।”

अदालत ने अभिलाषा गुप्ता बनाम हरीमोहन गुप्ता का हवाला देते हुए कहा कि जब मामला अंतिम चरण में हो, तो उसे स्थानांतरित नहीं किया जाना चाहिए।

अदालत ने यह भी उल्लेख किया कि उन्होंने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग का विकल्प अपनाने का प्रयास नहीं किया।

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अदालत ने ट्रांसफर याचिका खारिज करते हुए निम्नलिखित निर्देश दिए:

  • पत्नी पुणे फैमिली कोर्ट में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए पेशी की अनुमति मांग सकती हैं।
  • यदि उनकी शारीरिक उपस्थिति आवश्यक हो, तो पति प्रति उपस्थिति ₹5,000 खर्च वहन करेंगे।
  • फैमिली कोर्ट, पुणे को यह मामला तीन महीनों के भीतर निपटाने का निर्देश दिया गया।

“यह याचिका निराधार है और खारिज की जाती है।” – बॉम्बे हाईकोर्ट

केस का शीर्षक: अमृता पत्नी सचिन सोनुने बनाम सचिन पुत्र नामदेव सोनुने

केस संख्या: Miscellaneous सिविल आवेदन संख्या 51/2025