मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर पीठ ने एक पत्नी द्वारा दायर आपराधिक पुनरीक्षण याचिका को खारिज कर दिया जिसमें उसके पति को आईपीसी की धारा 377 के तहत बरी किए जाने को चुनौती दी गई थी। न्यायमूर्ति बिनोद कुमार द्विवेदी ने निचली अदालत के फैसले को सही ठहराते हुए कहा कि अब तक वैवाहिक बलात्कार को भारतीय कानून में मान्यता नहीं मिली है।
पत्नी ने आरोप लगाया था कि शादी के दौरान उसे क्रूरता, दहेज की मांग और अप्राकृतिक यौन संबंध का सामना करना पड़ा। इन आरोपों के आधार पर आईपीसी की विभिन्न धाराओं – 498-ए (क्रूरता), 377 (अप्राकृतिक अपराध), 323 (जानबूझकर चोट पहुंचाना), 294 (अश्लील कृत्य), और 506 (आपराधिक धमकी) – और दहेज निषेध अधिनियम की धाराओं के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई थी।
यह भी पढ़ें: उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता: केवल कानूनी विभाजन के बाद ही सह-भूमिधर अपनी हिस्सेदारी के लिए भूमि उपयोग परिवर्तन
हालांकि, ट्रायल कोर्ट ने पति को धारा 377 के आरोप से बरी कर दिया। पत्नी ने इस बरी किए जाने को चुनौती दी, यह तर्क देते हुए कि इस धारा के तहत आरोप तय करने के लिए पर्याप्त सबूत मौजूद थे।
प्रतिवादी के वकील ने सुप्रीम कोर्ट के नवतेज सिंह जौहर बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के निर्णय और आईपीसी की धारा 375 में संशोधित बलात्कार की परिभाषा का हवाला देते हुए बचाव किया। उन्होंने तर्क दिया कि पति और पत्नी के बीच यदि कोई अप्राकृतिक यौन कृत्य होता है, तो वह बलात्कार या धारा 377 के तहत अपराध नहीं माना जाता क्योंकि भारत में वैवाहिक बलात्कार को अपराध नहीं माना गया है।
यह भी पढ़ें: मध्यस्थता न्यायाधिकरण उस पक्ष के खिलाफ आगे बढ़ सकता है जिसे धारा 21 नोटिस नहीं दिया गया था: सुप्रीम कोर्ट का
हाईकोर्ट ने निम्नलिखित निर्णयों का उल्लेख करते हुए कहा:
“...यदि एक पत्नी अपने पति के साथ वैध विवाह के दौरान रह रही है, तो 15 वर्ष से अधिक आयु की पत्नी के साथ पति द्वारा किया गया कोई भी यौन संबंध या कृत्य बलात्कार नहीं है… ऐसी स्थिति में पत्नी की सहमति की अनुपस्थिति का महत्व नहीं रह जाता। वैवाहिक बलात्कार को अब तक मान्यता प्राप्त नहीं है।”
— मनीष साहू बनाम मध्य प्रदेश राज्य
कोर्ट ने उमंग सिंघर बनाम मध्य प्रदेश राज्य जैसे पूर्व के फैसलों को भी मान्यता दी और फिर से पुष्टि की कि:
"अब तक वैवाहिक बलात्कार को IPC के तहत मान्यता प्राप्त नहीं है।"
अदालत ने यह भी कहा कि यदि पत्नी के सभी आरोपों को सतही तौर पर भी सही मान लिया जाए, तो भी धारा 377 के तहत कोई अपराध सिद्ध नहीं होता।
यह भी पढ़ें: बिक्री समझौते के तहत प्रस्तावित खरीदार तीसरे पक्ष के कब्जे के खिलाफ मुकदमा दायर नहीं कर सकता : सुप्रीम कोर्ट
अंततः कोर्ट ने याचिका को निराधार मानते हुए कहा:
"यह मान भी लें कि पत्नी द्वारा लगाए गए सभी आरोप सत्य हैं, फिर भी आईपीसी की धारा 377 के तहत कोई अपराध सिद्ध नहीं होता।"
इस प्रकार, कोर्ट ने पति को अप्राकृतिक यौन संबंध के आरोप में बरी किए जाने के फैसले को बरकरार रखते हुए पुनरीक्षण याचिका खारिज कर दी।
केस का शीर्षक: जेके बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य, आपराधिक पुनरीक्षण संख्या 1937/2024