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SC ने हत्या के मामले में नाबालिग होने का आरोप खारिज किया, उम्र का सबूत न मिलने पर वयस्क के तौर पर मुकदमा चलाने का आदेश दिया

Vivek G.

सुप्रीम कोर्ट ने एक हत्या मामले में आरोपी की किशोरावस्था का दावा खारिज करते हुए स्कूल प्रमाणपत्र को अविश्वसनीय माना। अदालत ने आरोपी को वयस्क मानते हुए मुकदमा चलाने का निर्देश दिया।

SC ने हत्या के मामले में नाबालिग होने का आरोप खारिज किया, उम्र का सबूत न मिलने पर वयस्क के तौर पर मुकदमा चलाने का आदेश दिया

सुरेश बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य [Criminal Appeal No. 347 of 2018] में सुप्रीम कोर्ट ने 1 अगस्त 2025 को ट्रायल कोर्ट और इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें आरोपी (उत्तरदाता संख्या 2) को ‘किशोर’ घोषित किया गया था। अदालत ने कहा कि आरोपी के खिलाफ घर में जबरन घुसकर हत्या करने का गंभीर आरोप है और उसे भारतीय दंड संहिता की धाराओं के तहत वयस्क के रूप में मुकदमा झेलना होगा।

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मामला

31 अगस्त 2011 को अपीलकर्ता सुरेश ने आरोप लगाया कि उसके चाचा लिल्लू सिंह और चचेरे भाई देवी सिंह (उत्तरदाता संख्या 2) ने जबरन उसके घर में घुसकर उसकी पत्नी के साथ मारपीट की, जब वह खेत में थे।

बाद में जब सुरेश और उसका भाई राजेश घटना के बारे में सुनकर पहुंचे, तो राजेश, लिल्लू सिंह और देवी सिंह से बात करने गया। उसी दौरान, आरोप है कि दोनों ने राजेश को अपने घर में खींच लिया और देवी सिंह ने देसी पिस्तौल से उसे गोली मार दी, जिससे उसकी मौत हो गई।

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FIR भारतीय दंड संहिता की धारा 452 और 302 के तहत दर्ज हुई।

ट्रायल कोर्ट ने कौशिक मॉडर्न पब्लिक स्कूल के ट्रांसफर सर्टिफिकेट के आधार पर, जिसमें आरोपी की जन्मतिथि 18.04.1995 लिखी थी, यह माना कि वह घटना के समय 16 साल 4 महीने का था और किशोर था।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी 2016 में ट्रायल कोर्ट के आदेश को सही ठहराया।

अपीलकर्ता ने स्कूल रिकॉर्ड को चुनौती देते हुए कहा:

  • आरोपी को सीधे कक्षा 5 में उसके पिता के मौखिक बयान पर दाखिला दिया गया था, किसी दस्तावेज़ की पुष्टि नहीं की गई थी।
  • उत्तर प्रदेश पंचायती राज अधिनियम के तहत परिवार रजिस्टर में उसकी जन्मतिथि 1991 बताई गई थी।
  • 2012 की वोटर लिस्ट में उसकी उम्र 22 साल दर्ज थी।
  • मुख्य चिकित्सा अधिकारी (CMO) की रिपोर्ट में उसकी उम्र दिसंबर 2012 में 22 साल बताई गई।

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अपीलकर्ता ने बीरद माल सिंघवी बनाम आनंद पुरोहित और ओम प्रकाश बनाम राजस्थान राज्य मामलों का हवाला देते हुए कहा कि स्कूल सर्टिफिकेट बिना पुष्टि के सीमित महत्व रखते हैं और मेडिकल एवं सार्वजनिक दस्तावेजों को प्राथमिकता मिलनी चाहिए।

“किशोर घोषित करने का निर्णय स्पष्ट रूप से गलत था… मौखिक बयानों पर आधारित जन्म प्रमाणपत्र अविश्वसनीय है।” – न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह

कोर्ट ने कहा:

  • स्कूल प्रमाणपत्र केवल मौखिक बयान के आधार पर तैयार किया गया था।
  • अन्य सभी प्रमाणपत्र इसी एक रिकॉर्ड के आधार पर बने थे, जो स्वतंत्र नहीं थे।
  • परिवार रजिस्टर, वोटर लिस्ट और मेडिकल रिपोर्ट ने आरोपी की उम्र 18 से अधिक बताई।
  • स्कूल एक सरकारी स्कूल नहीं था, इसलिए उसका रिकॉर्ड ‘सार्वजनिक दस्तावेज़’ की श्रेणी में नहीं आता।

कोर्ट ने आरोपी को घटना के समय वयस्क माना।

  • सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट के आदेश रद्द किए।
  • आरोपी को वयस्क माना गया और उसके खिलाफ मुकदमा अब वयस्क के रूप में चलेगा।
  • ट्रायल कोर्ट को जुलाई 2026 तक मुकदमा पूरा करने का आदेश।
  • आरोपी को तीन सप्ताह में ट्रायल कोर्ट में पेश होने का आदेश। वह जमानत की मांग कर सकता है।
  • किशोर न्याय बोर्ड द्वारा दिया गया रिहाई आदेश रद्द किया गया।

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“गंभीर अपराधों में किशोर न्याय अधिनियम का दुरुपयोग नहीं होने दिया जा सकता।” – सुप्रीम कोर्ट पीठ

केस का शीर्षक: सुरेश बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य

केस संख्या: आपराधिक अपील संख्या 347/2018

निर्णय की तिथि: 1 अगस्त 2025

अपीलकर्ता: सुरेश

प्रतिवादी: 1. उत्तर प्रदेश राज्य 2. देवी सिंह