जम्मू और कश्मीर हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि भर्ती प्रक्रिया के दौरान किसी अमान्य संस्था से जारी प्रमाणपत्र प्रस्तुत करना धोखाधड़ी या कपट नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने कहा कि ऐसा प्रमाणपत्र भले ही मेरिट निर्धारण के लिए अमान्य हो, लेकिन इससे उम्मीदवार को बेईमानी के आधार पर अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता।
याचिकाकर्ता ने एक आधिकारिक विज्ञापन के तहत शारीरिक शिक्षा शिक्षक (पी.ई.टी.) के पद के लिए आवेदन किया था। उसने 41.29 अंक प्राप्त किए थे, जबकि अंतिम चयनित उम्मीदवार को केवल 28.61 अंक मिले थे। वह अस्थायी मेरिट सूची में क्रम संख्या 23 पर सूचीबद्ध था।
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हालांकि, बाद में उसका नाम यह कहकर हटा दिया गया कि उसने फर्जी राष्ट्रीय खेल प्रमाणपत्र प्रस्तुत किया था। मामला केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (सीएटी) तक पहुंचा, जिसने सबूतों की जांच किए बिना उसकी याचिका खारिज कर दी।
न्यायमूर्ति रजनीश ओसवाल और न्यायमूर्ति मोहम्मद यूसुफ वानी की खंडपीठ ने टिप्पणी की:
“याचिकाकर्ता द्वारा प्रस्तुत किया गया प्रमाणपत्र, भले ही भर्ती प्रक्रिया के लिए अमान्य हो, लेकिन वह न तो फर्जी था और न ही जाली। अधिक से अधिक, प्राधिकारी दस्तावेजों की जांच करते समय इसे बाहर कर सकते थे।”
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हाई कोर्ट ने 03.07.2013 की अपराध शाखा रिपोर्ट का हवाला दिया, जिसमें यह पुष्टि की गई थी कि प्रमाणपत्र वास्तविक है लेकिन किसी अमान्य संस्था द्वारा जारी किया गया है। इसलिए, कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि यह धोखाधड़ी या जालसाजी का मामला नहीं है।
खंडपीठ ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता का नाम किसी भी प्राथमिकी (FIR) में नहीं था, जबकि अन्य उम्मीदवारों के खिलाफ, जिन्होंने जाली दस्तावेज प्रस्तुत किए थे, धोखाधड़ी और फर्जीवाड़े के आरोप में एफआईआर दर्ज की गई थी। इससे यह साबित होता है कि याचिकाकर्ता ने कोई धोखाधड़ी नहीं की थी।
“अगर प्रमाणपत्र फर्जी या जाली होता, तो यह धोखाधड़ी या कपट का मामला होता। लेकिन यहां ऐसा कोई कार्य नहीं हुआ है,” कोर्ट ने कहा।
याचिकाकर्ता ने यह भी तर्क दिया कि यदि खेल प्रमाणपत्र को मेरिट निर्धारण से बाहर भी कर दिया जाए, तब भी उसके बाकी अंकों के आधार पर वह चयन सूची में आता है।
कोर्ट ने माना कि न्यायाधिकरण का आदेश जल्दबाज़ी में दिया गया था और उसने आवश्यक तथ्यों की अनदेखी की। इसलिए, कोर्ट ने न्यायाधिकरण और भर्ती प्राधिकारी दोनों के आदेशों को रद्द कर दिया और निर्देश दिया कि अमान्य प्रमाणपत्र को छोड़कर याचिकाकर्ता की मेरिट का पुनर्मूल्यांकन किया जाए।
“यह प्रक्रिया आदेश की प्रमाणित प्रति प्राप्त होने की तारीख से तीन माह के भीतर पूरी की जाए,” कोर्ट ने निर्देश दिया।
उपस्थिति
मोहम्मद यावर हुसैन, याचिकाकर्ता के वकील
फहीम निसार शाह, जीए, सुश्री महा मजीद प्रतिवादियों के लिए
केस-शीर्षक:मोहम्मद शफीक डार बनाम केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर और अन्य, 2025