मंगलवार को रायलसीमा की एक पुरानी बिजली परियोजना से जुड़ा विवाद निर्णायक मोड़ पर पहुंचा, जब सुप्रीम कोर्ट ने आंध्र प्रदेश पावर जेनरेशन कॉरपोरेशन लिमिटेड (APGENCO) के खिलाफ एक कंसोर्टियम सदस्य द्वारा शुरू की गई मध्यस्थता को रोकने से इनकार कर दिया। अदालत का माहौल नाटकीय नहीं बल्कि व्यावहारिक था। पीठ बार-बार इस बात पर जोर देती दिखी कि इस स्तर पर अदालतों को खुद “मिनी ट्रायल” नहीं करना चाहिए। संदेश साफ था-जहां मध्यस्थता उपलब्ध है, वहां अदालतों को संयम बरतना चाहिए।
पृष्ठभूमि
यह विवाद रायलसीमा थर्मल पावर प्लांट के लिए APGENCO द्वारा दिए गए एक EPC कॉन्ट्रैक्ट से जुड़ा है। यह ठेका एक कंसोर्टियम को मिला था, जिसमें टेक्रो सिस्टम्स लिमिटेड लीड में था, जबकि VA Tech Wabag लिमिटेड और गैमन इंडिया लिमिटेड अन्य सदस्य थे।
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काम के दौरान हालात बिगड़ने लगे। टेक्रो को गंभीर वित्तीय संकट का सामना करना पड़ा, परियोजना में देरी हुई और अंततः कंसोर्टियम की लीडरशिप VA Tech Wabag के पास चली गई। 2017 में टेक्रो के दिवाला प्रक्रिया में जाने से स्थिति और जटिल हो गई।
इसके बावजूद, टेक्रो ने लगभग ₹1,951 करोड़ के नुकसान का दावा करते हुए जनरल कंडीशंस ऑफ कॉन्ट्रैक्ट में मौजूद मध्यस्थता क्लॉज को लागू करने का नोटिस जारी किया। APGENCO ने इसका विरोध किया और कहा कि मध्यस्थता केवल पूरा कंसोर्टियम ही शुरू कर सकता है, कोई एक सदस्य अकेले ऐसा नहीं कर सकता। हालांकि, तेलंगाना हाई कोर्ट ने यह आपत्ति खारिज कर दी और मध्यस्थ न्यायाधिकरण का गठन कर दिया। इसके बाद APGENCO सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।
अदालत की टिप्पणियां
जस्टिस पामिडिघंटम श्री नरसिंहा और जस्टिस अतुल एस. चंदूरकर की पीठ ने स्पष्ट किया कि आर्बिट्रेशन एक्ट की धारा 11 के तहत अदालत की भूमिका सीमित है।
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पीठ ने कहा, “रेफरल कोर्ट को केवल प्रथम दृष्टया यह देखना होता है कि क्या कोई मध्यस्थता समझौता मौजूद है।” इसके आगे यह तय करना कि मध्यस्थता किसे और किस हैसियत से शुरू करने का अधिकार है, यह काम मध्यस्थ न्यायाधिकरण का है।
अदालत ने यह भी कहा कि कंसोर्टियम की संरचना, किसी सदस्य का अधिकार, दिवालिया स्थिति, या अन्य साझेदारों की सहमति जैसे सवाल तथ्यात्मक और संविदात्मक जांच की मांग करते हैं। ऐसे मुद्दों पर विस्तार से विचार करना न्यायाधिकरण का काम है। इसे सरल शब्दों में कम्पिटेन्स-कम्पिटेन्स का सिद्धांत कहा जाता है, यानी न्यायाधिकरण खुद अपने अधिकार क्षेत्र का फैसला करता है।
पीठ ने यह भी नोट किया कि इसी परियोजना से जुड़े, राज्य विभाजन के बाद के एक अन्य विवाद में पहले ही मध्यस्थता की अनुमति दी जा चुकी है। यह तथ्य निर्णायक नहीं था, लेकिन अदालत के अनुसार इससे निरंतरता की आवश्यकता जरूर झलकती है।
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निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने यह मानते हुए कि हाई कोर्ट ने रेफरल स्टेज पर कानून की सीमा से बाहर जाकर कुछ नहीं किया, APGENCO की अपीलें खारिज कर दीं। अदालत ने मध्यस्थ न्यायाधिकरण के गठन को बरकरार रखा और साफ किया कि मध्यस्थता की वैधता, अधिकार और बनाए रखने से जुड़े सभी सवाल न्यायाधिकरण के सामने खुले रहेंगे। लागत के संबंध में कोई आदेश नहीं दिया गया।
Case Title: M/s Andhra Pradesh Power Generation Corporation Limited vs M/s Tecpro Systems Limited & Others
Case No.: Civil Appeal Nos. of 2025 (arising out of SLP (C) Nos. 8998 of 2023 and 13200 of 2023)
Case Type: Civil Appeals (Appointment of Arbitral Tribunal under Arbitration and Conciliation Act, 1996)
Decision Date: December 17, 2025









