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सुप्रीम कोर्ट ने हत्या के आरोप को कमजोर करने पर हाईकोर्ट की खिंचाई की, कोशिश से हत्या की सजा बरकरार

Vivek G.

सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट को मणिकलाल साहू केस में हत्या को कोशिश में बदलने पर फटकार लगाई, 7 साल की सजा बरकरार।

सुप्रीम कोर्ट ने हत्या के आरोप को कमजोर करने पर हाईकोर्ट की खिंचाई की, कोशिश से हत्या की सजा बरकरार

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को मणिकलाल साहू बनाम छत्तीसगढ़ राज्य मामले में अहम फैसला सुनाया। इसमें यह जांचा गया कि क्या हाईकोर्ट ने हत्या की सजा को बदलकर ‘हत्या की कोशिश’ करना गलत किया था। यह मामला एक बर्बर हमले से जुड़ा है, जिसमें पीड़ित की मौत कुछ महीनों बाद हुई थी। शीर्ष अदालत ने नीयत, मेडिकल कारण और लंबे इलाज के बाद हुई मौत पर गहराई से चर्चा की।

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पृष्ठभूमि

यह घटना फरवरी 2022 की है, जिला बेमेतरा, छत्तीसगढ़। अभियोजन के मुताबिक, मणिकलाल साहू और तीन अन्य आरोपी 22 वर्षीय रेखचंद वर्मा के घर घुसे, उसे छत पर घसीट ले गए और नीचे फेंक दिया। इसके बाद भी उन्होंने उसे लाठियों और मुक्कों से पीटा।

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रेखचंद उस दिन तो बच गया, लेकिन उसकी रीढ़ की हड्डी टूटने से वह लकवाग्रस्त हो गया। कई महीने तक उसे संक्रमण, निमोनिया और गंभीर बेडसोर झेलने पड़े और आखिरकार नवंबर 2022 में उसने दम तोड़ दिया। उसका मरते समय दिया गया बयान और डॉक्टरों की गवाही अभियोजन का मुख्य आधार बनी।

शुरुआत में सेशन कोर्ट ने चारों आरोपियों को धारा 302 (हत्या) के तहत दोषी ठहराकर उम्रकैद की सजा दी। मगर जुलाई 2024 में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने सजा घटाकर धारा 307 (हत्या की कोशिश) कर दी और सिर्फ 7 साल की कड़ी कैद और जुर्माने का आदेश दिया।

न्यायालय की टिप्पणियाँ

जस्टिस जे.बी. पारदीवाला की पीठ ने हाईकोर्ट के फैसले पर कड़ा एतराज जताया। आदेश में लिखा गया—“हमें यह समझाना जरूरी है कि हाईकोर्ट का नजरिया गलत क्यों है।”

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महीनों बाद सेप्टीसीमिया या निमोनिया से मौत हो जाने से यह मान लेना सही नहीं कि मौत का असली कारण मूल हमला नहीं था। अदालत ने कहा, “हर मामला अपनी परिस्थितियों पर टिका होता है। अहम यह है कि लगी चोटें सामान्य स्थिति में मौत का कारण बनने के लिए पर्याप्त थीं या नहीं।”

पिछले फैसलों का हवाला देते हुए अदालत ने कहा कि लंबे इलाज के दौरान होने वाले संक्रमण, लकवे या सेप्टिक शॉक को मूल हमले से अलग नहीं किया जा सकता। फैसले में साफ शब्दों में कहा गया-“हिंसा से हुई मौत के मामले में यह तर्क देना कि पीड़ित के शरीर में पहले से कोई बीमारी थी, तब तक मान्य नहीं जब तक यह साबित न हो जाए कि मौत का कारण सिर्फ वही बीमारी थी।”

जहां तक गवाहों की बात है, अदालत ने पीड़ित के भाइयों और मां की गवाही पर सवाल उठाने वाली दलीलों को खारिज किया। “उनकी बात को नकारने का कोई कारण हमें नजर नहीं आता,” पीठ ने कहा।

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फैसला

आखिर में सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि हाईकोर्ट ने हत्या की सजा को ‘हत्या की कोशिश’ में बदलकर “गंभीर भूल” की है। हालांकि, चूंकि राज्य सरकार ने हत्या की धारा बहाल करने के लिए अपील दायर नहीं की थी, इसलिए सर्वोच्च न्यायालय ने हाईकोर्ट का आदेश पलटा नहीं।

दोष सिद्धि धारा 307 आईपीसी (हत्या की कोशिश) के तहत ही कायम रहेगी, जिसमें सात साल की कड़ी कैद और जुर्माना शामिल है। लेकिन अदालत ने सख्त चेतावनी दी कि जब मौत लंबे इलाज के बाद भी मूल चोटों से जुड़ी हो, तो अदालतें हत्या के आरोप को हल्के में कम न करें।

मामला: माणिकलाल साहू बनाम छत्तीसगढ़ राज्य (2025)

अपील संख्या: आपराधिक अपील संख्या 5578/2024

निर्णय की तिथि: 12 सितंबर 2025

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