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सुप्रीम कोर्ट: ट्रायल कोर्ट को "लोअर कोर्ट" कहना संविधान के खिलाफ

25 May 2025 11:01 AM - By Vivek G.

सुप्रीम कोर्ट: ट्रायल कोर्ट को "लोअर कोर्ट" कहना संविधान के खिलाफ

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में स्पष्ट किया कि किसी ट्रायल कोर्ट के रिकॉर्ड को "लोअर कोर्ट रिकॉर्ड" कहना संविधान की आत्मा के खिलाफ है। इस फैसले में, न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति ए. जी. मसीह की पीठ ने कहा:

"ट्रायल कोर्ट के रिकॉर्ड को 'लोअर कोर्ट रिकॉर्ड' नहीं कहा जाना चाहिए। किसी भी अदालत को 'लोअर कोर्ट' कहना हमारे संविधान की आत्मा के खिलाफ है।"

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कोर्ट ने यह टिप्पणी एक आपराधिक अपील पर फैसला सुनाते समय की, जिसमें दो अपीलकर्ताओं को भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 302 और धारा 307 के तहत दोषी ठहराते हुए सुनाई गई आजीवन कारावास की सजा को रद्द कर दिया गया।

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह निर्देश नया नहीं है। इससे पहले 8 फरवरी 2024 को पारित आदेश में कोर्ट ने पहले ही रजिस्ट्री को निर्देश दिया था कि लोअर कोर्ट रिकॉर्ड (LCR) की जगह ट्रायल कोर्ट रिकॉर्ड (TCR) शब्द का उपयोग किया जाए। इस निर्देश के पालन में, रजिस्ट्री ने 28 फरवरी 2024 को एक परिपत्र जारी किया।

मामले में कोर्ट ने पाया कि जांच में गंभीर खामियाँ थीं। तीन प्रत्यक्षदर्शियों ने जमानत सुनवाई के दौरान हलफनामे देकर आरोपियों की संलिप्तता से इनकार किया था। लेकिन, अभियोजन पक्ष ने इन हलफनामों पर कोई कार्रवाई नहीं की और आगे की जांच नहीं कराई। इसके बजाय, इन हलफनामों को दबा दिया गया, जिससे जांच की निष्पक्षता पर सवाल खड़े हुए।

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सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर सख्त टिप्पणी की:

"चूँकि अभियोजन पक्ष ने निष्पक्ष जांच नहीं की है और पीडब्ल्यू-5 से पीडब्ल्यू-7 के हलफनामों के रूप में महत्वपूर्ण सामग्री को दबा दिया है, इसलिए केवल पीडब्ल्यू-4 की गवाही के आधार पर अपीलकर्ताओं को दोषी ठहराना सुरक्षित नहीं है। हलफनामों के आधार पर आगे की जांच न करना मामले की जड़ तक जाता है। इन परिस्थितियों की पृष्ठभूमि में अपराध के हथियारों की बरामदगी में असफलता भी प्रासंगिक हो जाती है।"

इन गंभीर खामियों के कारण, कोर्ट ने दोषसिद्धि को बरकरार रखना असुरक्षित माना। यह मामला न केवल निष्पक्ष जांच की आवश्यकता को उजागर करता है, बल्कि संविधान की आत्मा के सम्मान में ट्रायल कोर्ट को “लोअर कोर्ट” कहने से बचने की आवश्यकता को भी रेखांकित करता है।

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सुप्रीम कोर्ट का यह स्पष्ट निर्देश यह सुनिश्चित करता है कि सभी अदालतों को संविधान के तहत मिलने वाली गरिमा और सम्मान के अनुरूप संदर्भित किया जाए।

मामला: सखावत और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य

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