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सुप्रीम कोर्ट ने 10 वर्षीय सड़क हादसा पीड़ित के माता-पिता को अधिक मुआवजा बहाल किया

Vivek G.

सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट का आदेश रद्द कर मोटर एक्सीडेंट क्लेम्स ट्रिब्यूनल का ₹8.55 लाख मुआवजा बहाल किया, 10 वर्षीय बच्चे की सड़क दुर्घटना में मौत के मामले में उचित मुआवजे पर जोर दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने 10 वर्षीय सड़क हादसा पीड़ित के माता-पिता को अधिक मुआवजा बहाल किया

सुप्रीम कोर्ट ने मोटर एक्सीडेंट क्लेम्स ट्रिब्यूनल (MACT) द्वारा 10 वर्षीय लड़के के माता-पिता को दी गई मुआवजा राशि को बहाल कर दिया। यह बच्चा तमिलनाडु स्टेट ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन की बस से हुई सड़क दुर्घटना में मारा गया था।

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मदुरै बेंच ऑफ मद्रास हाईकोर्ट ने पहले मुआवजा ₹8.55 लाख से घटाकर ₹5.80 लाख कर दिया था, जिसके खिलाफ माता-पिता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

मामले की पृष्ठभूमि

लड़का साइकिल से स्कूल जा रहा था जब बस ने उसे टक्कर मार दी। परिवहन निगम ने चालक की लापरवाही पर कोई विवाद नहीं किया, और अपील केवल मुआवजे की राशि पर केंद्रित रही।

ट्रिब्यूनल ने बच्चे की अनुमानित आय ₹5,000 प्रति माह मानते हुए 18 का मल्टीप्लायर लगाया और व्यक्तिगत खर्च के लिए दो-तिहाई कटौती की। मुआवजे में ₹1,00,000 प्रेम और स्नेह की हानि, ₹25,000 अंतिम संस्कार खर्च, और ₹5,000-₹5,000 परिवहन और कपड़े व सामान के नुकसान के लिए शामिल किए गए।

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हाईकोर्ट ने अनुमानित आय घटाकर ₹30,000 वार्षिक कर दी और मोटर व्हीकल्स एक्ट के शेड्यूल II को अपनाते हुए, मां की उम्र के आधार पर 15 का मल्टीप्लायर लगाया। अंतिम संस्कार खर्च को घटाकर ₹15,000 किया गया, परिवहन व कपड़े संबंधी क्षतिपूर्ति हटा दी गई, लेकिन ₹15,000 संपत्ति हानि के रूप में जोड़ दिए गए।

इस तरह कुल मुआवजा ₹5.80 लाख कर दिया गया।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बच्चों से जुड़े मामलों में आय तय करने का कोई तयशुदा फार्मूला नहीं है। ट्रिब्यूनल द्वारा ₹5,000 मासिक आय अपनाना सही था और यह पहले के डिवीजन बेंच के फैसलों से मेल खाता है।

अदालत ने स्पष्ट किया कि शेड्यूल II केवल धारा 163A के अंतर्गत दायर दावों पर लागू होता है (नो-फॉल्ट लायबिलिटी), जबकि यह मामला धारा 166 के तहत था, जिसमें चालक की लापरवाही साबित हो चुकी थी।

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अदालत ने कहा कि ऐसे मामलों में व्यक्तिगत खर्च के लिए कटौती नहीं होनी चाहिए और हाईकोर्ट द्वारा हटाए गए परिवहन व कपड़े संबंधी क्षतिपूर्ति को बहाल किया जाना चाहिए।

"हमारा मत है कि ट्रिब्यूनल द्वारा अपनाई गई ₹5,000 मासिक आय पूरी तरह उचित है… व्यक्तिगत खर्च की कोई कटौती का प्रश्न ही नहीं उठता।" – सुप्रीम कोर्ट पीठ

हालांकि पुनर्गणना से ₹8.70 लाख मुआवजा बनता था, लेकिन चूंकि माता-पिता ने बढ़ोतरी की अपील नहीं की थी, अदालत ने ट्रिब्यूनल द्वारा दिए गए ₹8.55 लाख के मूल अवॉर्ड को ही बहाल कर दिया।

परिवहन निगम को निर्देश दिया गया कि वह एक महीने के भीतर शेष राशि, पहले से दी गई या जमा की गई रकम घटाकर, ब्याज सहित अदा करे।

केस का शीर्षक: थंगावेल एवं अन्य बनाम प्रबंध निदेशक, तमिलनाडु राज्य परिवहन निगम लिमिटेड

केस संख्या: सिविल अपील संख्या 3595/2024

निर्णय की तिथि: 8 अगस्त 2025

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