दिल्ली मेट्रो विज्ञापन अनुबंध विवाद: हाईकोर्ट ने कारणों के अभाव में मध्यस्थता पुरस्कार रद्द किया

By Vivek G. • December 26, 2025

मेसर्स ट्रैफिक मीडिया (इंडिया) प्राइवेट लिमिटेड बनाम दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन, दिल्ली मेट्रो विज्ञापन विवाद में हाईकोर्ट ने कारणों के अभाव और मुख्य मुद्दे पर फैसला न होने से मध्यस्थता पुरस्कार रद्द किया।

दिल्ली हाईकोर्ट में बुधवार को उस पुराने विवाद का पटाक्षेप हुआ, जो दिल्ली मेट्रो के भीतर विज्ञापन अधिकारों को लेकर शुरू हुआ था। कोर्ट ने साफ शब्दों में कहा कि जब किसी मध्यस्थता फैसले में असली विवाद पर ही फैसला नहीं किया गया हो, तो ऐसे पुरस्कार को बचाया नहीं जा सकता। न्यायमूर्ति जसप्रीत सिंह की पीठ ने मेट्रो और एक निजी विज्ञापन कंपनी के बीच हुए समझौते से जुड़े मध्यस्थता पुरस्कार को रद्द कर दिया।

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Background

मामला वर्ष 2010 का है, जब एम/एस ट्रैफिक मीडिया (इंडिया) प्राइवेट लिमिटेड को दिल्ली मेट्रो की कुछ ट्रेनों में विज्ञापन लगाने के अधिकार दिए गए थे। यह अनुबंध दो मेट्रो लाइनों-इंद्रलोक–मुंडका (लाइन-5) और सेंट्रल सेक्रेटेरियट–बदरपुर (लाइन-6)-से जुड़ा था।

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कंपनी का कहना था कि उसे लाइन-6 की ट्रेनों के लिए भी भुगतान करने को मजबूर किया गया, जबकि उस समय यह लाइन पूरी तरह चालू ही नहीं थी। ट्रैफिक मीडिया ने बार-बार आपत्ति जताई कि ऐसी ट्रेनों से विज्ञापन के जरिए कमाई संभव नहीं थी। इसके बावजूद, दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन (DMRC) ने अनुबंध समाप्त कर दिया और पहले से जमा लाइसेंस शुल्क व सुरक्षा राशि भी वापस नहीं की।

इस विवाद के बाद मामला मध्यस्थता में गया, जहां 2013 में आए पुरस्कार में कंपनी के अधिकतर दावे खारिज कर दिए गए। उसी पुरस्कार को चुनौती देते हुए कंपनी हाईकोर्ट पहुंची।

Court’s Observations

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने मध्यस्थता पुरस्कार को बारीकी से परखा। न्यायालय ने कहा कि मध्यस्थ ने कई मुद्दे तय तो किए, लेकिन उन पर कोई ठोस चर्चा नहीं की।

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पीठ ने टिप्पणी की, “मध्यस्थता पुरस्कार में निष्कर्ष तो दर्ज हैं, लेकिन यह नहीं बताया गया कि उन निष्कर्षों तक पहुंचा कैसे गया।” कोर्ट ने यह भी नोट किया कि मध्यस्थ ने खुद माना था कि लाइन-6 की ट्रेनों को जबरन लाइन-5 पर चलाना अनुचित था, फिर भी यह तय नहीं किया गया कि इससे अनुबंध का उल्लंघन किसने किया।

कोर्ट के मुताबिक, यही सवाल पूरे विवाद की जड़ था। जब यह तय ही नहीं किया गया कि गलती किसकी थी, तो न तो सुरक्षा राशि जब्त करने का आधार बनता है और न ही कंपनी के रिफंड दावे को खारिज किया जा सकता है।

Decision

इन परिस्थितियों में दिल्ली हाईकोर्ट ने माना कि मध्यस्थता पुरस्कार में न तो स्पष्ट कारण हैं और न ही मुख्य विवाद पर कोई निर्णय। कोर्ट ने पुरस्कार को मनमाना और टिकाऊ न मानते हुए रद्द कर दिया। इसके साथ ही ट्रैफिक मीडिया की याचिका स्वीकार कर ली गई और लंबित सभी आवेदन निस्तारित कर दिए गए।

Case Title: M/s Traffic Media (India) Pvt. Ltd. vs Delhi Metro Rail Corporation

Case No.: O.M.P. 1277/2013

Case Type: Petition under Section 34, Arbitration and Conciliation Act, 1996

Decision Date: 24 December 2025

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