Logo
Court Book - India Code App - Play Store

advertisement

दिल्ली हाईकोर्ट ने वैवाहिक मामलों में गोपनीयता की मांग वाली याचिका खारिज की

Shivam Y.

दिल्ली हाईकोर्ट ने पंकज जैन की याचिका खारिज की जिसमें उन्होंने वैवाहिक विवरणों के प्रकटीकरण पर रोक लगाने की मांग की थी, कोर्ट ने कहा HMA की धारा 22 का कोई उल्लंघन नहीं हुआ।

दिल्ली हाईकोर्ट ने वैवाहिक मामलों में गोपनीयता की मांग वाली याचिका खारिज की

दिल्ली हाईकोर्ट ने 28 जुलाई 2025 को पंकज जैन बनाम पारुल जैन मामले में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया, जो वैवाहिक विवादों में गोपनीयता से संबंधित था। यह अपील पंकज जैन द्वारा हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 28 और पारिवारिक न्यायालय अधिनियम, 1984 की धारा 19 के तहत दायर की गई थी। अपील का उद्देश्य फैमिली कोर्ट द्वारा 29 मार्च 2025 को दिए गए फैसले को चुनौती देना था, जिसमें धारा 22 के तहत उनकी याचिका को खारिज कर दिया गया था।

Read in English

पंकज जैन और पारुल जैन का विवाह 22 अप्रैल 2006 को हुआ था और उनकी एक पुत्री 11 फरवरी 2013 को जन्मी। विवाह के बाद विवाद उत्पन्न हुए और पारुल जैन ने फैमिली कोर्ट में HMA संख्या 1089/2018 के तहत तलाक की कार्यवाही शुरू की।

कार्यवाही के दौरान, याची ने 2021 से 2024 के बीच धारा 22 के तहत कई आवेदन दाखिल किए। उन्होंने आरोप लगाया कि पारुल जैन, उनके भाई और उनके नियोक्ता ने वैवाहिक और अभिरक्षा संबंधी मामलों की गोपनीय जानकारी बाहरी व्यक्तियों के साथ साझा की। ये जानकारी दीवानी व आपराधिक मामलों में, POCSO अधिनियम के तहत शिकायतों में, पुलिस विभाग और स्कूल जैसी संस्थाओं के साथ साझा की गई थी।

Read also:- SC ने हत्या के मामले में नाबालिग होने का आरोप खारिज किया, उम्र का सबूत न मिलने पर वयस्क के तौर पर मुकदमा चलाने का आदेश दिया

पंकज जैन ने अदालत से अनुरोध किया कि वे इन लोगों को वैवाहिक रिकार्ड के किसी भी हिस्से के उपयोग या प्रसार से रोकें, यह कहते हुए कि यह HMA की धारा 22 का उल्लंघन है।

फैमिली कोर्ट ने चारों याचिकाओं को एक ही आदेश में खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि कोई ऐसा साक्ष्य नहीं है जिससे ये साबित हो कि कोई भी गोपनीय जानकारी सार्वजनिक रूप से प्रकाशित की गई हो। कोर्ट ने यह भी कहा कि प्रतिवादी और उनके भाई द्वारा की गई जानकारियों का उल्लेख, स्वयं याची द्वारा शुरू किए गए मामलों की प्रतिक्रिया में किया गया था।

“हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 22 का कोई उल्लंघन नहीं हुआ क्योंकि कोई भी जानकारी सार्वजनिक डोमेन में प्रकाशित नहीं की गई,” फैमिली कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला।

अपील में, पंकज जैन ने स्वयं पक्षकार के रूप में पेश होकर कहा कि फैमिली कोर्ट ने उनके मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को सही तरीके से नहीं समझा। उन्होंने कहा कि भले ही ये जानकारियाँ मीडिया में प्रकाशित नहीं हुईं, लेकिन इन्हें “कार्रवाई से संबंधित प्रकटीकरण” माना जाना चाहिए और इससे उनकी व उनकी बेटी की निजता को ठेस पहुंची है।

Read also:- जम्मू-कश्मीर HC ने आतंकी संबंधों के चलते UAPA मामले में जहूर अहमद मीर की जमानत खारिज कर दी

उन्होंने यह भी तर्क दिया कि फैमिली कोर्ट ने “प्रकाशन” शब्द की संकीर्ण व्याख्या की है और प्रतिवादी की “न्याय की रक्षा के अधिकार” की दलील को अनावश्यक रूप से महत्व दिया। उन्होंने कहा कि अदालत से पूर्व अनुमति के बिना नियोक्ता व अधिकारियों से दस्तावेज साझा करना स्पष्ट उल्लंघन है।

उन्होंने मद्रास हाईकोर्ट के आर. सुकन्या बनाम आर. श्रीधर फैसले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि अनधिकृत प्रकटीकरण पर दंडात्मक कार्रवाई की जा सकती है।

न्यायमूर्ति अनिल क्षेत्रपाल और न्यायमूर्ति हरीश वैद्यनाथन शंकर की पीठ ने याचिका को खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 22 का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि matrimonial मामलों की संवेदनशील जानकारी सार्वजनिक न हो।

“यह प्रावधान सार्वजनिक रूप से जानकारी को प्रिंट या प्रकाशित करने से रोकता है जब तक कि कोर्ट की अनुमति प्राप्त न हो,” पीठ ने स्पष्ट किया।

Read also:- केरल उच्च न्यायालय ने SEZ अधिनियम के बावजूद किराया नियंत्रण याचिका को विचारणीय बताया

कोर्ट ने माना कि प्रतिवादी द्वारा की गई जानकारियाँ सिर्फ कानूनी कार्यवाही की प्रतिक्रिया में दी गई थीं, और वह भी आपराधिक व नियामक मामलों में जो स्वयं याची ने शुरू किए थे। यहां तक कि POCSO मामले में की गई जानकारी भी सिर्फ कानूनी उपायों के तहत दी गई थी।

“सच्चे कानूनी बचाव में किया गया कोई भी उल्लेख प्रकाशन के बराबर नहीं माना जा सकता,” अदालत ने कहा।

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि जब याची से यह पूछा गया कि किस प्रकार से प्रकाशन हुआ है, तो वे कोई ठोस उत्तर नहीं दे पाए। यह भी उनके तर्क को कमजोर करता है।

अतः अपील खारिज कर दी गई।

केस का शीर्षक: पंकज जैन बनाम पारुल जैन

केस संख्या: MAT. APP. (F.C.) 264/2025