शिमला में बैठी हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने आईआईटी मंडी और सेंट्रल पब्लिक वर्क्स डिपार्टमेंट (CPWD) से जुड़े एक बड़े निर्माण विवाद में अहम आदेश सुनाया। अदालत ने स्पष्ट किया कि ठेकेदार और CPWD के बीच चल रही मध्यस्थता (Arbitration) में आईआईटी मंडी को जबरन पक्षकार नहीं बनाया जा सकता।
यह फैसला उस याचिका पर आया, जिसमें आईआईटी मंडी ने मध्यस्थ के आदेश को चुनौती दी थी।
मामले की पृष्ठभूमि
आईआईटी मंडी ने वर्ष 2011 में CPWD के साथ एक समझौता (MOU) किया था। इसके तहत आईआईटी मंडी परिसर में शैक्षणिक और आवासीय भवनों का निर्माण CPWD को सौंपा गया।
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CPWD ने आगे चलकर इस परियोजना के लिए एक निजी ठेकेदार को कार्य सौंपा। बाद में ठेकेदार और CPWD के बीच भुगतान और काम से जुड़ा विवाद खड़ा हो गया, जिसे मध्यस्थता के लिए भेजा गया।
इसी मध्यस्थता कार्यवाही में आईआईटी मंडी ने यह कहते हुए खुद को पक्षकार बनाए जाने की मांग की कि—
- परियोजना उसी की है
- किसी भी आर्थिक देनदारी का अंतिम भार उस पर आएगा
- इसलिए बिना सुने उसके खिलाफ फैसला होना अन्यायपूर्ण होगा
मध्यस्थ ने आईआईटी मंडी की अर्जी खारिज कर दी थी। उनका साफ कहना था कि-
- मध्यस्थता समझौता केवल ठेकेदार और CPWD के बीच है
- आईआईटी मंडी उस अनुबंध की न तो हस्ताक्षरकर्ता है, न ही सीधे तौर पर उसकी भागीदार
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मध्यस्थ ने अपने आदेश में कहा था,
“सिर्फ यह आशंका कि भविष्य में आर्थिक बोझ पड़ सकता है, किसी तीसरे पक्ष को मध्यस्थता में जोड़ने का आधार नहीं बनती।”
आईआईटी मंडी ने हाईकोर्ट में दलील दी कि-
- ठेकेदार द्वारा मांगी गई भारी रकम का असर सीधे उस पर पड़ेगा
- CPWD के खिलाफ कोई भी अवार्ड अंततः आईआईटी मंडी से ही वसूला जाएगा
- सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसलों के अनुसार, कुछ मामलों में गैर-हस्ताक्षरकर्ता को भी मध्यस्थता में जोड़ा जा सकता है
अदालत का अवलोकन
न्यायमूर्ति अजय मोहन गोयल की एकल पीठ ने रिकॉर्ड का गहन अध्ययन किया। अदालत ने माना कि-
- CPWD–आईआईटी मंडी और CPWD–ठेकेदार, दोनों अलग-अलग और स्वतंत्र अनुबंध हैं
- ठेकेदार ने आईआईटी मंडी के खिलाफ कोई दावा नहीं किया है
- आईआईटी मंडी ने ठेकेदार के साथ न तो बातचीत की, न काम के निष्पादन में सीधी भूमिका निभाई
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अदालत ने कहा,
“सिर्फ परियोजना में रुचि होना या संभावित आर्थिक प्रभाव, मध्यस्थता में पक्षकार बनने के लिए पर्याप्त नहीं है।”
अंतिम निर्णय
हाईकोर्ट ने मध्यस्थ के आदेश में हस्तक्षेप से इनकार कर दिया और आईआईटी मंडी की याचिका खारिज कर दी। अदालत ने स्पष्ट किया कि-
- मध्यस्थता कानून के तहत केवल वही पक्ष जो समझौते से बंधे हों, कार्यवाही का हिस्सा बन सकते हैं
- आईआईटी मंडी को इस चरण पर पक्षकार बनाना कानूनी रूप से उचित नहीं है
इस तरह, ठेकेदार और CPWD के बीच चल रही मध्यस्थता बिना आईआईटी मंडी की भागीदारी के जारी रहेगी।
Case Title: IIT Mandi vs Central Public Works Department
Case No.: CWP No. 9200 of 2025
Case Type: Writ Petition (Arbitration Matter)
Decision Date: 29 December 2025














