एक महत्वपूर्ण फैसले में पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि केवल इस आधार पर कि पत्नी ग्रेजुएट है, उसे भरण-पोषण से वंचित नहीं किया जा सकता, खासकर जब वह बेरोजगार हो और उसकी कोई स्वतंत्र आमदनी न हो।
"सिर्फ इस तथ्य से कि प्रतिवादी/पत्नी ग्रेजुएट है, यह नहीं माना जा सकता कि उसे भरण-पोषण के अधिकार से वंचित किया जा सकता है, जो कि उसे एक वैधानिक प्रावधान के तहत प्राप्त है, जब तक कि धारा 125 Cr.P.C. के अंतर्गत उल्लिखित आधारों पर उसका यह अधिकार समाप्त न हो जाए," जस्टिस जसगुरप्रीत सिंह पुरी ने कहा।
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अदालत ने यह भी कहा कि जब तक पत्नी की आमदनी इतनी अधिक न हो कि वह अपने पति की तुलना में अधिक कमा रही हो और वह स्वयं का भरण-पोषण करने में सक्षम हो, तब तक केवल उसकी शिक्षा इस अधिकार को समाप्त नहीं कर सकती।
विवेच्य मामले में, महिला एक ग्रेजुएट है लेकिन बेरोजगार है और उसकी 6 वर्षीय बेटी की देखभाल व कस्टडी उसी के पास है। हाईकोर्ट ने कहा कि जब पत्नी की कोई आय नहीं है, तो उसे केवल शैक्षणिक योग्यता के आधार पर भरण-पोषण से वंचित नहीं किया जा सकता।
"किसी भी दृष्टिकोण से यह नहीं कहा जा सकता कि निर्धारित भरण-पोषण की राशि अधिक है,"
अदालत ने कहा। फैमिली कोर्ट द्वारा निर्धारित ₹14,000 प्रतिमाह (₹9,000 पत्नी के लिए और ₹5,000 बच्ची के लिए) की राशि को कोर्ट ने उचित ठहराया।
दोनों की शादी 2018 में हुई थी और 2019 में एक बच्ची का जन्म हुआ, जो पत्नी की कस्टडी में है।
पति ने फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए कहा कि उसकी मासिक आय ₹34,033 है और वह पिरामल कैपिटल हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड में कलेक्शन ब्रांच मैनेजर के पद पर कार्यरत है। उसने यह भी कहा कि उसके पास कई आर्थिक जिम्मेदारियां हैं, जैसे बीमा की ₹25,560 सालाना प्रीमियम और ₹9,463 मासिक कार लोन की EMI, साथ ही वृद्ध दादा-दादी की देखभाल की जिम्मेदारी भी।
हालांकि, कोर्ट ने उसकी दलीलों को खारिज करते हुए कहा:
"धारा 125 Cr.P.C. के तहत याचिका पर विचार करते समय पति पर केवल एक वैधानिक नहीं बल्कि सामाजिक, आर्थिक और नैतिक जिम्मेदारी भी होती है, जो उसे पत्नी और नाबालिग बच्चों का भरण-पोषण करने के लिए बाध्य करती है।"
जस्टिस पुरी ने यह भी स्पष्ट किया कि पति की अन्य व्यक्तिगत खर्चों की दलीलें प्रासंगिक नहीं हैं और कानून के अनुसार उस पर दायित्व तय किया गया है।
पति के वकील ने यह भी दलील दी कि पत्नी बी.ए. और पीजीडीसीए पास है, इसलिए वह काम करने में सक्षम है, लेकिन यह तर्क भी कोर्ट ने अस्वीकार कर दिया। कोर्ट ने दोहराया कि केवल शिक्षा के आधार पर पत्नी को भरण-पोषण से वंचित नहीं किया जा सकता, जब तक वह कमाने योग्य रूप से कार्यरत न हो।
अंत में, कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के आदेश को बरकरार रखते हुए पति पर ₹10,000 का जुर्माना लगाया और निर्देश दिया कि यह राशि तीन महीने के भीतर फैमिली कोर्ट, लुधियाना में जमा की जाए।
"दायित्व कानून के अनुसार तय होता है और इसीलिए याचिकाकर्ता के वकील की यह दलील अस्वीकार्य है," कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा।
अधिवक्ता श्री अमनदीप सिंह ने श्री आर.के. मालिक, अधिवक्ता की ओर से पेश होकर बहस की।