पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा है कि केवल किसी अपराधी की छिपने की जगह की जानकारी होना पर्याप्त नहीं है कि किसी व्यक्ति को IPC की धाराओं के तहत “शरण देने” के अपराध में दोषी ठहराया जाए, जब तक यह साबित न हो कि उस व्यक्ति ने अपराधी को गिरफ्तारी या सजा से बचाने में कोई सक्रिय मदद की हो।
यह अहम टिप्पणी न्यायमूर्ति मनीषा बत्रा ने उस समय की, जब उन्होंने एक matrimonial dispute मामले में आरोपी हरीश कंडा को शरण देने के आरोप में दर्ज FIR को रद्द किया। FIR में यह आरोप लगाया गया था कि हरीश कंडा के पिता और भाई ने उसे छिपा कर रखा।
"IPC की धारा 212 लागू करने के लिए यह साबित करना आवश्यक है कि आरोपी ने जानबूझकर अपराधी को छिपाया या शरण दी और इसका उद्देश्य उसे कानून से बचाना था," कोर्ट ने कहा।
Read Also:- CJI बीआर गवई: कोटा के भीतर उप-वर्गीकरण सबसे हाशिए पर पड़े लोगों के लिए उचित हिस्सेदारी सुनिश्चित करता है
FIR एक पुलिस अधिकारी की शिकायत पर दर्ज की गई थी, जिसमें कहा गया था कि हरीश कंडा अक्सर रात के समय अपने पिता के घर आता था और उसके खाने-पीने और रहने की व्यवस्था उसके परिवारजन करते थे, जबकि वे जानते थे कि वह वांछित है।
लेकिन कोर्ट ने पाया कि इस आरोप को साबित करने के लिए कोई ठोस साक्ष्य मौजूद नहीं है। यह स्पष्ट किया गया कि हरीश 2017 से अपने परिवार से अलग रह रहा था और उसका पिता और भाई से कोई नियमित संपर्क नहीं था।
"केवल यह जानना कि अपराधी कहां है, तब तक शरण देना नहीं कहलाता जब तक यह साबित न हो कि आरोपी ने उसे गिरफ्तारी से बचाने में कोई मदद की," कोर्ट ने कहा।
Read Also:- केरल उच्च न्यायालय ने 10वीं कक्षा के छात्र शाहबास की हत्या के मामले में आरोपी छह किशोरों को जमानत दी
प्रोसिक्यूशन ने जिन दस्तावेज़ों पर भरोसा किया उनमें एक 2019 का पासपोर्ट आवेदन (जिसमें आरोपी ने पिता का पता दिया), 2007–2008 की बैंक खाता विवरण और 2023 में ऋण खाता बंद होना शामिल था। लेकिन कोर्ट ने इन दस्तावेजों को अपर्याप्त माना।
"रिकॉर्ड में कोई भी दस्तावेज़ यह नहीं दर्शाता कि आरोपियों ने अपराधी की गिरफ्तारी से बचाने के लिए कोई सहायता की हो," जस्टिस बत्रा ने कहा।
कोर्ट ने आगे कहा कि किसी रिश्तेदार के ठिकाने की जानकारी से इनकार करना मात्र शरण देने के अपराध की श्रेणी में नहीं आता। अभियोजन पक्ष यह साबित करने में विफल रहा कि आरोपियों ने किसी प्रकार की सीधी या परोक्ष सहायता की।
"प्रॉसिक्यूशन को यह दिखाना चाहिए था कि आरोपियों ने मुख्य अपराधी हरीश कंडा की मदद की, लेकिन रिकॉर्ड पर ऐसा कुछ नहीं है," कोर्ट ने कहा।
कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के प्रसिद्ध फैसले स्टेट ऑफ हरियाणा बनाम भजनलाल का हवाला देते हुए दोहराया कि जब FIR में आवश्यक तत्व नहीं होते, तो अदालतों को दखल देकर कानून के दुरुपयोग को रोकना चाहिए।
FIR और आरोपों में कोई दम न पाते हुए कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि इस तरह की कार्यवाही को जारी रखना न्याय प्रणाली का दुरुपयोग होगा।
"यह मामला दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत कोर्ट की अंतर्निहित शक्तियों के प्रयोग के लिए उपयुक्त है, ताकि वास्तविक और सार्थक न्याय किया जा सके," कोर्ट ने कहा और FIR रद्द कर दी।
हाइलाइट हेतु उद्धरण:
"केवल किसी अपराधी की जानकारी होना शरण देना नहीं है, जब तक आरोपी ने गिरफ्तारी से बचाने में कोई सक्रिय सहायता न की हो।" – जस्टिस मनीषा बत्रा
शीर्षक: चमन लाल कांडा और अन्य बनाम पंजाब राज्य