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सुप्रीम कोर्ट: अयोग्यता मामलों में स्पीकर के लिए समय-सीमा निर्धारित नहीं

Vivek G.

सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि दसवीं अनुसूची के तहत अयोग्यता मामलों में स्पीकर के निर्णय के लिए अदालतें कोई समय-सीमा तय नहीं कर सकतीं। हालांकि, स्पीकर के निर्णय के बाद न्यायिक समीक्षा संभव है।

सुप्रीम कोर्ट: अयोग्यता मामलों में स्पीकर के लिए समय-सीमा निर्धारित नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने पाड़ी कौशिक रेड्डी व अन्य बनाम तेलंगाना राज्य व अन्य मामले में दसवीं अनुसूची के तहत अयोग्यता याचिकाओं पर स्पीकर की भूमिका को लेकर एक महत्वपूर्ण संवैधानिक मुद्दे को स्पष्ट किया। यह मामला उन विधायकों की अयोग्यता याचिकाओं पर निर्णय में देरी को लेकर था, जिन्होंने 2023 के तेलंगाना विधानसभा चुनावों के बाद कथित रूप से भारत राष्ट्र समिति (BRS) छोड़कर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) का दामन थाम लिया था।

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मामला

नवंबर 2023 में तेलंगाना विधानसभा चुनावों के बाद, BRS के तीन विधायक — दानम नागेंदर, वेंकट राव तेल्लम और कडियम श्रीहरी — अपने-अपने क्षेत्रों से विजयी हुए। आरोप है कि तीनों ने 2024 की शुरुआत में INC जॉइन कर ली। इनके खिलाफ BRS और भाजपा विधायकों ने दसवीं अनुसूची की धारा 2(1) के तहत अयोग्यता याचिकाएं दायर कीं।

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स्पीकर द्वारा कोई कार्रवाई न किए जाने के चलते याचिकाकर्ताओं ने तेलंगाना हाईकोर्ट का रुख किया। एकल न्यायाधीश ने विधानसभा सचिव को निर्देश दिया कि वे याचिकाएं स्पीकर के समक्ष चार सप्ताह में पेश करें। बाद में यह आदेश हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने रद्द कर दिया, जिसके विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई।

क्या अदालतें स्पीकर को अयोग्यता याचिकाओं पर निर्णय के लिए समय-सीमा निर्धारित करने का निर्देश दे सकती हैं?

मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई ने निर्णय सुनाते हुए कहा:

“जब तक स्पीकर द्वारा कोई निर्णय नहीं लिया जाता, तब तक न्यायिक समीक्षा संभव नहीं है... और Quia Timet (पूर्व आशंका) कार्रवाई अनुमेय नहीं है।”

अदालत ने स्पष्ट किया कि यद्यपि अयोग्यता मामलों की न्यायिक समीक्षा हो सकती है, परंतु कोई भी अदालत स्पीकर को समयबद्ध निर्णय के लिए बाध्य नहीं कर सकती

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  • स्पीकर दसवीं अनुसूची की धारा 6(1) के तहत एक न्यायाधिकरण (Tribunal) की तरह कार्य करते हैं और उनके निर्णयों की समीक्षा केवल सीमित आधारों पर (जैसे कि mala fide, प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन आदि) की जा सकती है।
  • किहोटो होलोहन बनाम ज़ाचिल्लु, राजेन्द्र सिंह राणा, और सुभाष देसाई जैसे मामलों के आधार पर कोर्ट ने दोहराया कि स्पीकर के निर्णय से पहले न्यायिक हस्तक्षेप केवल अत्यंत असाधारण परिस्थितियों में ही संभव है।
  • केशम मेघचंद्र सिंह मामले में जो रुख अपनाया गया था, उसे इस मामले में मान्य नहीं माना गया।

“यदि स्पीकर द्वारा निर्णय लेने में अत्यधिक देरी हो रही हो, तो यह दुर्भाग्यपूर्ण हो सकता है, परंतु इससे अदालत को पूर्वनिर्धारित समय-सीमा तय करने का अधिकार नहीं मिलता।”

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यह फैसला संवैधानिक संतुलन को बनाए रखते हुए यह सुनिश्चित करता है कि स्पीकर को उनके संवैधानिक अधिकारों का सम्मान दिया जाए। जबकि याचिकाओं पर देरी अवांछनीय है, फिर भी अदालतें स्पीकर को समयबद्ध आदेश नहीं दे सकतीं।

मामले का शीर्षक: पडी कौशिक रेड्डी एवं अन्य बनाम तेलंगाना राज्य एवं अन्य

निर्णय तिथि: 26 जुलाई 2024

उद्धरण: सिविल अपील संख्या 4865-4866/2024