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कथित फर्जी ई-स्टाम्प संपत्ति विवाद में सुप्रीम कोर्ट ने FIR बहाल की, कहा जांच रोकना न्याय प्रक्रिया में बाधा

Vivek G.

सुप्रीम कोर्ट ने कथित फर्जी ई-स्टाम्प संपत्ति मामले में FIR बहाल की, कहा पुलिस जांच रुकनी नहीं चाहिए। कर्नाटक हाई कोर्ट के आदेश रद्द।

कथित फर्जी ई-स्टाम्प संपत्ति विवाद में सुप्रीम कोर्ट ने FIR बहाल की, कहा जांच रोकना न्याय प्रक्रिया में बाधा

एक ऐसी सुनवाई जिसमें कई बार तर्क तेज हो गए और माहौल गंभीर बना रहा, सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कर्नाटक हाई कोर्ट के उन दो आदेशों को रद्द कर दिया, जिन्होंने पहले एक कथित फर्जी रेंट एग्रीमेंट से जुड़े आपराधिक मामले की जांच रोक दी थी।

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न्यायमूर्ति पंकज मित्तल और न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने कहा कि पुलिस जांच को शुरुआती चरण में ही रोकना “न्याय के मार्ग में बाधा” डालने जैसा होगा।

यह मामला बेलगावी की एक संपत्ति और उस ई-स्टाम्प पेपर से जुड़ा है, जिसके बारे में शिकायतकर्ता का दावा है कि उसे अदालत को गुमराह करने के लिए गढ़ा गया था।

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पृष्ठभूमि

शिकायतकर्ता सादिक बी. हांचिनमानी लंबे समय से संपत्ति के स्वामित्व को लेकर नागरिक विवाद लड़ रहे हैं। जब विवादित संपत्ति पर मरम्मत कार्य होने लगा, जबकि हाई कोर्ट ने उस पर ‘स्टेटस-क्वो’ बनाए रखने का आदेश दिया था, तब सादिक ने अवमानना की कार्रवाई की।

इसी दौरान विपक्ष की ओर से 20 मई 2013 का एक रेंट एग्रीमेंट अदालत के सामने पेश किया गया-जो ई-स्टाम्प पेपर पर बना था। दावा किया गया कि यह समझौता अदालत के आदेश से पहले का था, इसलिए किसी आदेश का उल्लंघन नहीं हुआ।

सादिक ने जब ई-स्टाम्प की जांच कराई, तो पता चला कि उसी सीरियल नंबर का ई-स्टाम्प वास्तव में किसी और दो व्यक्तियों के बीच एक सेल एग्रीमेंट के लिए जारी किया गया था।

कर्नाटक रजिस्ट्रेशन विभाग के पत्र में भी इस ई-स्टाम्प को संदिग्ध बताया गया।

इसके बाद सादिक ने मजिस्ट्रेट अदालत में निजी शिकायत दर्ज की, जिसने पुलिस जांच के आदेश दिए। लेकिन बाद में कर्नाटक हाई कोर्ट की दो सिंगल-बेंचों ने इन कार्यवाहियों को रद्द कर दिया और कहा कि मजिस्ट्रेट ने ‘न्यायिक विवेक’ का उपयोग नहीं किया।

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अदालत की टिप्पणियाँ

सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के दृष्टिकोण से असहमति जताई।

पीठ ने कहा, “यह मामला केवल दीवानी विवाद का नहीं है। अगर ई-स्टाम्प वास्तव में फर्जी पाया जाता है, तो यह न्यायिक प्रक्रिया की पवित्रता से सीधा जुड़ा मामला है।”

अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि रेंट एग्रीमेंट ने पिछली सुनवाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, इसलिए इसकी सत्यता पर पुलिस जांच आवश्यक है - न कि शुरुआती स्तर पर खारिज करना।

न्यायमूर्ति अमानुल्लाह ने कहा, “जब प्रारंभिक दृष्टि में सामग्री मौजूद है, तो शुरुआती चरण में ही जांच रोकना कानून के खिलाफ है। पुलिस को जांच करने दी जानी चाहिए।”

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निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने खाड़े बाज़ार पुलिस स्टेशन में दर्ज FIR को बहाल कर दिया और पुलिस को निर्देश दिया कि वह “कानून के अनुसार शीघ्र और निष्पक्ष जांच” पूरी करे।

अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि उसके अवलोकन न तो नागरिक मुकदमे और न ही अंतिम आपराधिक निष्कर्ष को प्रभावित करेंगे।

इस प्रकार मामला अब फिर से जांच स्तर पर लौट गया है, जहाँ पुलिस दस्तावेज़ की सत्यता और कथित फर्जीवाड़े की भूमिका की जांच करेगी। कोई जुर्माना (कॉस्ट) नहीं लगाया गया।

Case Title: Sadiq B. Hanchinmani v. State of Karnataka & Others (2025 INSC 1282)

Case Type: Criminal Appeals arising from quashing of FIR

Court: Supreme Court of India

Bench: Justice Pankaj Mithal & Justice Ahsanuddin Amanullah

Appellant: Sadiq B. Hanchinmani (Complainant)

Respondents: State of Karnataka and private accused parties

Decision Date: 04 November 2025

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