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त्रिपुरा छात्र की देहरादून में मौत के बाद सुप्रीम कोर्ट में PIL: नस्लीय हिंसा को ‘संवैधानिक विफलता’ बताया गया

Shivam Y.

अनूप प्रकाश अवस्थी बनाम भारत संघ और अन्य - देहरादून में त्रिपुरा के एक छात्र की मौत के बाद नस्लीय हिंसा पर कार्रवाई की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई है, जिसमें भारत में घृणा से प्रेरित अपराधों को मान्यता देने के लिए दिशानिर्देश जारी करने का आग्रह किया गया है।

त्रिपुरा छात्र की देहरादून में मौत के बाद सुप्रीम कोर्ट में PIL: नस्लीय हिंसा को ‘संवैधानिक विफलता’ बताया गया
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सर्वोच्च न्यायालय ने मंगलवार, 30 दिसंबर को त्रिपुरा की 24 वर्षीय छात्रा एंजेल (एंजल) चकमा की मौत के बाद तत्काल न्यायिक हस्तक्षेप की मांग करने वाली जनहित याचिका पर सुनवाई की। एंजेल (एंजल) चकमा पर इसी महीने की शुरुआत में उत्तराखंड के देहरादून में नस्लीय हमले का आरोप है। याचिका में तर्क दिया गया है कि यह घटना पूर्वोत्तर राज्यों के नागरिकों को घृणा आधारित हिंसा से बचाने में बार-बार होने वाली "संवैधानिक विफलता" को दर्शाती है।

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घटना का पृष्ठभूमि

यह घटना 9 दिसंबर को देहरादून के सेलाकुई क्षेत्र में हुई, जहां चाकमा और उनके भाई पर कुछ युवकों ने उनकी शारीरिक बनावट और पहचान को लेकर नस्लीय टिप्पणियाँ कीं। आरोप है कि विवाद बढ़ने के बाद हमलावरों ने धारदार हथियारों से हमला किया। चाकमा को गंभीर चोटें आईं और करीब दो सप्ताह ICU में रहने के बाद उनकी मौत हो गई।

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याचिका में उस क्षण का उल्लेख भी किया गया है जब चाकमा ने हमलावरों से कहा था-

“हम चीनी नहीं हैं… हम भारतीय हैं। हमें कौन-सा प्रमाणपत्र दिखाना पड़ेगा?”

पक्षकारों का कहना है कि यह वाक्य उनका आखिरी प्रतिरोध था, जिसके बाद हमला और हिंसक हो गया।

याचिकाकर्ता की मुख्य दलीलें

याचिका अनुच्छेद 32 के तहत दायर की गई है और इसमें कहा गया है कि देश में नस्लीय हमले अब भी साधारण अपराधों की तरह दर्ज होते हैं, जबकि इनमें नफरत और पूर्वाग्रह की स्पष्ट मंशा होती है। याचिका का कहना है कि नए आपराधिक कानून-

-लागू होने के बावजूद नस्लीय अपराधों को अलग श्रेणी में मान्यता नहीं दी गई है, जिससे “मकसद मिट जाता है और संवैधानिक गंभीरता कमजोर पड़ जाती है।”

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याचिका का यह भी दावा है कि उत्तर-पूर्वी नागरिकों के खिलाफ भेदभाव लंबे समय से मौजूद है और संसद में कई बार इसका उल्लेख हुआ है, लेकिन व्यावहारिक ढांचे की कमी कारण स्थिति जस की तस है।

क्या मांग की गई है

याचिका में सुप्रीम कोर्ट से मांगा गया है कि जब तक संसद कानून न बनाए, तब तक कोर्ट विषाखा गाइडलाइंस की तर्ज पर अंतरिम दिशा-निर्देश जारी करे। मांगे इस प्रकार हैं:

  • नस्लीय अपराधों की अलग श्रेणी मान्यता
  • FIR के समय ही नस्लीय मंशा दर्ज करना अनिवार्य
  • विशेष पुलिस इकाइयाँ और नोडल अधिकारी नियुक्त करना
  • पीड़ित संरक्षण तंत्र और सुरक्षा उपाय
  • शैक्षणिक संस्थानों में जागरूकता कार्यक्रम

याचिका के अनुसार, ऐसे अपराध संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 19 और 21 का सीधे उल्लंघन करते हैं और “प्रीऐम्बल में निहित बंधुत्व की भावना पर चोट पहुँचाते हैं।”

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सुप्रीम कोर्ट की प्रारंभिक टिप्पणी

प्रारंभिक सुनवाई के दौरान, पीठ ने इस मुद्दे की संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए प्रतिवादियों से नस्लीय हिंसा की रिपोर्टिंग और निगरानी के लिए मौजूदा ढांचे को स्पष्ट करने को कहा। बताया जाता है कि न्यायाधीशों में से एक ने टिप्पणी की,

"यदि कोई पुनरावृत्ति पैटर्न है, तो न्यायालय को यह सुनिश्चित करना होगा कि संवैधानिक सुरक्षा को केवल सिद्धांत तक सीमित नहीं किया जा रहा है।"

निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और अन्य प्रतिवादियों को नोटिस जारी किया है और उनसे जवाब दाखिल करने को कहा है। इसके बाद ही अगली सुनवाई में आगे की कार्यवाही तय होगी। याचिका पर आगे की सुनवाई जवाब दाखिल होने के बाद होगी।

Case Title:- Anoop Prakash Awasthi Versus Union of India & Ors.

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