छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य जंगल क्षेत्र में कोयला खनन को लेकर चल रही सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कोयला ब्लॉक अलॉटियों और राज्य सरकार से प्रतिपूरक वृक्षारोपण को लेकर गंभीर सवाल उठाए।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्य बागची की पीठ दो जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। ये याचिकाएं सुधीप श्रीवास्तव और दिनेश कुमार सोनी ने दायर की हैं। इन याचिकाओं में पीईकेबी (परसा ईस्ट और केंते बासन) और परसा कोल ब्लॉकों में हो रहे खनन को चुनौती दी गई है, साथ ही पर्यावरणीय नियमों और कोलगेट मामले में आए सुप्रीम कोर्ट के पूर्व आदेशों के उल्लंघन का आरोप लगाया गया है।
वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण, जो याचिकाकर्ता दिनेश कुमार सोनी की ओर से पेश हुए, ने कोर्ट को बताया कि हसदेव अरण्य क्षेत्र को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) ने "नो-गो" और "इनवायलेट" ज़ोन घोषित किया है। उन्होंने कहा:
"इस क्षेत्र में दी गई सभी खनन लीजें इसी संरक्षित क्षेत्र में आती हैं, फिर भी परमिशन दी गई, जिससे बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई हो रही है।"
भूषण ने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट पहले इन्हीं कोल ब्लॉकों के आवंटन को रद्द कर चुका है जब उन्हें एक निजी कंपनी — कथित रूप से अदाणी समूह — को दिया गया था। अब वही ब्लॉक फिर से उसी निजी कंपनी को दे दिए गए हैं, जो सुप्रीम कोर्ट के पूर्व निर्णय का उल्लंघन है।
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प्रतिवादी पक्ष की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने तर्क दिया कि खनन चरणबद्ध तरीके से हो रहा है और नियमों के अनुसार 100 पेड़ काटने पर 1000 पेड़ लगाने की अनुमति है। उन्होंने कहा:
"हमारे पास सभी आवश्यक परमिशन हैं। पुनर्वनीकरण नियमों के अनुसार हो रहा है।"
लेकिन न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने इस पर सख्त सवाल किया:
"अगर 100 पेड़ काटे गए हैं, तो वो 1000 पेड़ कहाँ लगाए गए हैं? कौन-सी जगह पर लगाए गए हैं? कौन उन्हें मॉनिटर करता है? क्या कोई सरकारी एजेंसी इस पर नजर रख रही है?"
रोहतगी ने जवाब दिया कि इस कार्य की निगरानी छत्तीसगढ़ के वन विभाग द्वारा की जा रही है। लेकिन बेंच ने दोहराया कि केवल दावे करना पर्याप्त नहीं है, ये स्पष्ट होना चाहिए कि वृक्षारोपण कहाँ और किस स्तर पर हुआ है।
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याचिकाकर्ता सुधीप श्रीवास्तव, जो खुद पेश हुए, ने बताया कि खनन गतिविधियां भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) की रिपोर्ट का उल्लंघन कर रही हैं। उन्होंने कहा:
"देश में कुल कोयला भंडार का सिर्फ 10% ही घने जंगलों में है और वर्तमान एवं भविष्य की मांग बिना इन जंगलों को छुए पूरी की जा सकती है।"
उन्होंने यह भी कहा कि भले ही वृक्षारोपण किया जाए, इस क्षेत्र में खनन से अपूरणीय क्षति होगी। श्रीवास्तव ने बताया कि पहले कोल ब्लॉक में लगभग 3.68 लाख पेड़ हैं और दूसरे ब्लॉक में 96,000 पेड़। रिपोर्ट्स के अनुसार दोनों ब्लॉकों में कुल मिलाकर 10 लाख से अधिक पेड़ हैं।
“जब पहले ब्लॉक से जरूरत पूरी हो सकती है, तो घने जंगलों में जाने की क्या आवश्यकता है?” भूषण ने पूछा और WII की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि रिपोर्ट ने साफ कहा है कि इस क्षेत्र में खनन की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
श्रीवास्तव ने यह भी बताया कि यह क्षेत्र मनुष्य-हाथी संघर्ष का केंद्र है और भारत में इस तरह के कुल संघर्षों में 15% मौतें छत्तीसगढ़ में हुई हैं।
वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी, जो परसाकेन्ते कोलियरीज़ लिमिटेड की ओर से पेश हुए, ने कहा कि यह कंपनी केवल माइन डेवलपर एंड ऑपरेटर (MDO) है और आवंटन में उनकी कोई भूमिका नहीं है।
जब बेंच ने पूछा कि क्या राज्य सरकार की कोई भूमिका है, तो भूषण ने बताया कि छत्तीसगढ़ विधानसभा ने पूरे सदन में खनन के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया है।
केंद्र सरकार की ओर से एएसजी ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि राज्य वृक्षारोपण के लिए प्रयास कर रहा है। इस पर जस्टिस कांत ने पूछा:
“क्या आपके पास पहले चरण में कटाई का हवाई दृश्य है? किस तरह कटाई हुई और वृक्षारोपण कहाँ किया गया? वर्तमान स्थिति क्या है?”
मामले को स्थगित कर दिया गया है ताकि सभी पक्ष अपनी सुविधाजनक दस्तावेज़ और उत्तर दाखिल कर सकें। भूषण ने यह आशंका जताई कि मानसून खत्म होते ही फिर से पेड़ काटे जा सकते हैं, इसलिए अदालत ने मामले को 19 अगस्त के लिए सूचीबद्ध किया है।
मामले के शीर्षक:
- दिनेश कुमार सोनी बनाम भारत संघ एवं अन्य, डब्ल्यूपी (सिविल) नं. 371/2019
- सुधीप श्रीवास्तव बनाम भारत संघ एवं अन्य, डब्ल्यूपी (सिविल) नं. 510/2023